इश्क यहां पर मिजाजी से हकीकी तक का सफर हो गया है। इस फलसफे को सूफी ही समझ सकते हैं आम आदमी के बस की बात नहीं। कौन नहीं जानता कि बाबा बुल्ले शाह अपने मुर्शद के इश्क में नाचे थे। हजरत अमीर खुसरो की शायरी इसी फलसफे की है। वह कहते हैं खुशरो बाजी प्रेम की ये उल्टी वा की धार, जो उभरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार ...
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इश्क यहां पर मिजाजी से हकीकी तक का सफर हो गया है। इस फलसफे को सूफी ही समझ सकते हैं आम आदमी के बस की बात नहीं। कौन नहीं जानता कि बाबा बुल्ले शाह अपने मुर्शद के इश्क में नाचे थे। हजरत अमीर खुसरो की शायरी इसी फलसफे की है। वह कहते हैं खुशरो बाजी प्रेम की ये उल्टी वा की धार, जो उभरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार ...
जी आगे से ध्यान रखा जाएगा..पर बॉस आजकल लंबा लेख कौन पढ़ता है।
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