Wednesday, July 23, 2008

वारिस शाह

अव्वल हम्द ख़ुदा दा विरद कीजै
इश्क़ कीता सू जग दा मूल मियां
पहले आप ख़ुदा ने इश्क़ कीता
ते माशूक़ सी नबी रसूल मियां
'हीर' बाबा वारस शाह

2 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

इश्‍क यहां पर मिजाजी से हकीकी तक का सफर हो गया है। इस फलसफे को सूफी ही समझ सकते हैं आम आदमी के बस की बात नहीं। कौन नहीं जानता कि बाबा बुल्‍ले शाह अपने मुर्शद के इश्‍क में नाचे थे। हजरत अमीर खुसरो की शायरी इसी फलसफे की है। वह कहते हैं खुशरो बाजी प्रेम की ये उल्‍टी वा की धार, जो उभरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार ...

मनीषा भल्ला said...

जी आगे से ध्यान रखा जाएगा..पर बॉस आजकल लंबा लेख कौन पढ़ता है।